ज़ाहिदो रौज़ा-ए-रिज़वाँ से कहो इश्क़ अल्लाह
आशिक़ो कूचा-ए-जानाँ से कहो इश्क़ अल्लाह
जिस की आँखों ने किया बज़्म-ए-दो-आलम को ख़राब
कोई उस फ़ित्ना-ए-दौराँ से कहो इश्क़ अल्लाह
यारो देखो जो कहीं उस गुल-ए-ख़ंदाँ का जमाल
तो मिरे दीदा-ए-गिर्यां से कहो इश्क़ अल्लाह
हैं जो वो कुश्ता-ए-शमशीर निगाह-ए-क़ातिल
जा के उन गंज-ए-शहीदाँ से कहो इश्क़ अल्लाह
आह के साथ मिरे सीने से निकले है धुआँ
ऐ बुताँ मुझ दिल-ए-बिरयाँ से कहो इश्क़ अल्लाह
याद में उस के रुख़ ओ ज़ुल्फ़ की हर आन 'नज़ीर'
रोज़-ओ-शब सुम्बुल-ओ-रैहाँ से कहो इश्क़ अल्लाह
ग़ज़ल
ज़ाहिदो रौज़ा-ए-रिज़वाँ से कहो इश्क़ अल्लाह
नज़ीर अकबराबादी