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ज़ाहिदो रौज़ा-ए-रिज़वाँ से कहो इश्क़ अल्लाह | शाही शायरी
zahido rauza-e-rizwan se kaho ishq allah

ग़ज़ल

ज़ाहिदो रौज़ा-ए-रिज़वाँ से कहो इश्क़ अल्लाह

नज़ीर अकबराबादी

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ज़ाहिदो रौज़ा-ए-रिज़वाँ से कहो इश्क़ अल्लाह
आशिक़ो कूचा-ए-जानाँ से कहो इश्क़ अल्लाह

जिस की आँखों ने किया बज़्म-ए-दो-आलम को ख़राब
कोई उस फ़ित्ना-ए-दौराँ से कहो इश्क़ अल्लाह

यारो देखो जो कहीं उस गुल-ए-ख़ंदाँ का जमाल
तो मिरे दीदा-ए-गिर्यां से कहो इश्क़ अल्लाह

हैं जो वो कुश्ता-ए-शमशीर निगाह-ए-क़ातिल
जा के उन गंज-ए-शहीदाँ से कहो इश्क़ अल्लाह

आह के साथ मिरे सीने से निकले है धुआँ
ऐ बुताँ मुझ दिल-ए-बिरयाँ से कहो इश्क़ अल्लाह

याद में उस के रुख़ ओ ज़ुल्फ़ की हर आन 'नज़ीर'
रोज़-ओ-शब सुम्बुल-ओ-रैहाँ से कहो इश्क़ अल्लाह