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यूँही चुपके चुपके रोना यूँही दिल ही दिल में बातें | शाही शायरी
yunhi chupke chupke rona yunhi dil hi dil mein baaten

ग़ज़ल

यूँही चुपके चुपके रोना यूँही दिल ही दिल में बातें

मसूद अख़्तर जमाल

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यूँही चुपके चुपके रोना यूँही दिल ही दिल में बातें
बड़ी कश्मकश के दिन हैं बड़ी उलझनों की रातें

है नफ़स नफ़स फ़रोज़ाँ है मिज़ा मिज़ा चराग़ाँ
बड़ी धूम से उठी हैं ग़म-ओ-दर्द की बरातें

मिरे ज़ेहन की ख़ला में मिरे दिल की वुसअ'तों में
कहीं रंग-ओ-बू के ख़ेमे कहीं नूर की क़नातें

उन्हें ऐ ग़म-ए-ज़माना कभी राएगाँ न करना
हैं बहुत लतीफ़-ओ-नाज़ुक ग़म-ए-दिल की वारदातें

ये 'जमाल' मय-कदा है नहीं याँ कोई तकल्लुफ़
ओ अरब अजम के झगड़े न हसब नसब न ज़ातें