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यूँही आती नहीं हवा मुझ में | शाही शायरी
yunhi aati nahin hawa mujh mein

ग़ज़ल

यूँही आती नहीं हवा मुझ में

इदरीस बाबर

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यूँही आती नहीं हवा मुझ में
अभी रौशन है इक दिया मुझ में

वो मुझे देख कर ख़मोश रहा
और इक शोर मच गया मुझ में

दोनों आदम के मुंतक़िम बेटे
और हुआ उन का सामना मुझ में

मैं मदीने को लौट आया हूँ
यानी जारी है कर्बला मुझ में

रौशनी आने वाले ख़्वाब की है
दिन तो कब का गुज़र चुका मुझ में

इस अँधेरे में जब कोई भी न था
मुझ से गुम हो गया ख़ुदा मुझ में