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यूँ तो वो हर किसी से मिलती है | शाही शायरी
yun to wo har kisi se milti hai

ग़ज़ल

यूँ तो वो हर किसी से मिलती है

मुस्तफ़ा ज़ैदी

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यूँ तो वो हर किसी से मिलती है
हम से अपनी ख़ुशी से मिलती है

सेज महकी बदन से शर्मा कर
ये अदा भी उसी से मिलती है

वो अभी फूल से नहीं मिलती
जूहिए की कली से मिलती है

दिन को ये रख-रखाव वाली शक्ल
शब को दीवानगी से मिलती है

आज-कल आप की ख़बर हम को!
ग़ैर की दोस्ती से मिलती है

शैख़-साहिब को रोज़ की रोटी
रात भर की बदी से मिलती है

आगे आगे जुनून भी होगा!
शेर में लौ अभी से मिलती है