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यूँ तो तन्हाई में घबराए बहुत | शाही शायरी
yun to tanhai mein ghabrae bahut

ग़ज़ल

यूँ तो तन्हाई में घबराए बहुत

वकील अख़्तर

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यूँ तो तन्हाई में घबराए बहुत
मिल के लोगों से भी पछताए बहुत

ऐसे लम्हे ज़ीस्त में आए बहुत
हम ने धोके जान कर खाए बहुत

ये नहीं मालूम कि क्या बात थी
रो रहे थे मेरे हम-साए बहुत

तुम ही बतला दो कि कोई क्या करे
ज़िंदगी जब बोझ बन जाए बहुत

हम फ़राज़-ए-दार तक तन्हा गए
दो क़दम तक लोग साथ आए बहुत

शहर-ए-ग़म जैसा था वैसा ही रहा
यूँ जहाँ में इंक़लाब आए बहुत

डूबना 'अख़्तर' था क़िस्मत में लिखा
वैसे हम तूफ़ाँ से टकराए बहुत