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यूँ नहीं था कि तीरगी कम थी | शाही शायरी
yun nahin tha ki tirgi kam thi

ग़ज़ल

यूँ नहीं था कि तीरगी कम थी

नफ़स अम्बालवी

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यूँ नहीं था कि तीरगी कम थी
धूप से अपनी दोस्ती कम थी

ख़्वाहिशों के हुजूम थे लेकिन
अपने हिस्से में ज़िंदगी कम थी

तुम न आए तो बस हुआ इतना
कल चराग़ों में रौशनी कम थी

हाँ वो हँस कर नहीं मिला फिर भी
उस की बातों में बे-रुख़ी कम थी

ग़म उसे भी न था बिछड़ने का
मेरी आँखों में भी नमी कम थी

कुछ तग़ाफ़ुल-मिज़ाज था साक़ी
और कुछ अपनी प्यास भी कम थी

उस का लहजा तो ख़ूब था लेकिन
उस के शे'रों में शाइ'री कम थी

क्यूँ मुझे दे गया वो सन्नाटे
क्या मिरे घर में ख़ामुशी कम थी