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यूँ न मिल मुझ से ख़फ़ा हो जैसे | शाही शायरी
yun na mil mujhse KHafa ho jaise

ग़ज़ल

यूँ न मिल मुझ से ख़फ़ा हो जैसे

एहसान दानिश

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यूँ न मिल मुझ से ख़फ़ा हो जैसे
साथ चल मौज-ए-सबा हो जैसे

लोग यूँ देख के हँस देते हैं
तू मुझे भूल गया हो जैसे

इश्क़ को शिर्क की हद तक न बढ़ा
यूँ न मिल हम से ख़ुदा हो जैसे

मौत भी आई तो इस नाज़ के साथ
मुझ पे एहसान किया हो जैसे

ऐसे अंजान बने बैठे हो
तुम को कुछ भी न पता हो जैसे

हिचकियाँ रात को आती ही रहीं
तू ने फिर याद किया हो जैसे

ज़िंदगी बीत रही है 'दानिश'
एक बे-जुर्म सज़ा हो जैसे