यूँ न मिल मुझ से ख़फ़ा हो जैसे
साथ चल मौज-ए-सबा हो जैसे
लोग यूँ देख के हँस देते हैं
तू मुझे भूल गया हो जैसे
इश्क़ को शिर्क की हद तक न बढ़ा
यूँ न मिल हम से ख़ुदा हो जैसे
मौत भी आई तो इस नाज़ के साथ
मुझ पे एहसान किया हो जैसे
ऐसे अंजान बने बैठे हो
तुम को कुछ भी न पता हो जैसे
हिचकियाँ रात को आती ही रहीं
तू ने फिर याद किया हो जैसे
ज़िंदगी बीत रही है 'दानिश'
एक बे-जुर्म सज़ा हो जैसे
ग़ज़ल
यूँ न मिल मुझ से ख़फ़ा हो जैसे
एहसान दानिश