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यूँ देख मिरे दीदा-ए-पुर-आब की गर्दिश | शाही शायरी
yun dekh mere dida-e-pur-ab ki gardish

ग़ज़ल

यूँ देख मिरे दीदा-ए-पुर-आब की गर्दिश

मोहम्मद रफ़ी सौदा

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यूँ देख मिरे दीदा-ए-पुर-आब की गर्दिश
दरिया में हो जिस तरह से गिर्दाब की गर्दिश

मरता हूँ तिरे वास्ते रोता हूँ ज़ि-बस यार
है सैल मिरी चश्म में गिर्दाब की गर्दिश

फिर जाती हैं इस तरह से इक पल में वो अँखियाँ
जूँ बज़्म में हो जाम-ए-मय-ए-नाब की गर्दिश

अज़-बस-कि है आँखों में ख़ुमार उस घड़ी साक़ी
मय माँगे है तुझ से जो हर अहबाब की गर्दिश

गो ख़ाक हुआ तो भी फिरा बन के बगूला
हो कर न गई आशिक़-ए-बेताब की गर्दिश

जिंस-ए-ख़िरद-ओ-सब्र बिन इस दिल को हो क्या चैन
मुफ़लिस को बुरी होती है अस्बाब की गर्दिश

दिल ज़ुल्फ़-ओ-रुख़-ए-यार में 'सौदा' न फिरे क्यूँ
ख़ुश आए है उस को शब-ए-महताब की गर्दिश