यूँ देख मिरे दीदा-ए-पुर-आब की गर्दिश
दरिया में हो जिस तरह से गिर्दाब की गर्दिश
मरता हूँ तिरे वास्ते रोता हूँ ज़ि-बस यार
है सैल मिरी चश्म में गिर्दाब की गर्दिश
फिर जाती हैं इस तरह से इक पल में वो अँखियाँ
जूँ बज़्म में हो जाम-ए-मय-ए-नाब की गर्दिश
अज़-बस-कि है आँखों में ख़ुमार उस घड़ी साक़ी
मय माँगे है तुझ से जो हर अहबाब की गर्दिश
गो ख़ाक हुआ तो भी फिरा बन के बगूला
हो कर न गई आशिक़-ए-बेताब की गर्दिश
जिंस-ए-ख़िरद-ओ-सब्र बिन इस दिल को हो क्या चैन
मुफ़लिस को बुरी होती है अस्बाब की गर्दिश
दिल ज़ुल्फ़-ओ-रुख़-ए-यार में 'सौदा' न फिरे क्यूँ
ख़ुश आए है उस को शब-ए-महताब की गर्दिश
ग़ज़ल
यूँ देख मिरे दीदा-ए-पुर-आब की गर्दिश
मोहम्मद रफ़ी सौदा