यूँ दावत-ए-शबाब न दो मैं नशे में हूँ
ये दूसरी शराब न दो मैं नशे में हूँ
ऐसा न हो कि नश्शे में कट जाए ज़िंदगी
आँखों को कोई ख़्वाब न दो मैं नशे में हूँ
इतना बहुत है तुम से निगाहें मिली रहें
अब बस करो शराब न दो मैं नशे में हूँ
यारो दिल-ओ-दिमाग़ में काफ़ी है फ़ासला
उलझे हुए जवाब न दो मैं नशे में हूँ
ऐसा न हो कि राज़ तुम्हारा मैं खोल दूँ
देखो मुझे जवाब न दो मैं नशे में हूँ
दामन का होश है न गरेबाँ का होश है
काँटों भरा गुलाब न दो मैं नशे में हूँ
ख़ुद को सँभालना यहाँ मुश्किल है दोस्तो
छलकी हुई शराब न दो मैं नशे में हूँ
जो लम्हे 'नूर' होश में रह कर गुज़र गए
उन का अभी हिसाब न दो मैं नशे में हूँ
ग़ज़ल
यूँ दावत-ए-शबाब न दो मैं नशे में हूँ
कृष्ण बिहारी नूर

