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यूँ ब-मुश्किल दिल-ए-मजरूह से पैकाँ निकला | शाही शायरी
yun ba-mushkil dil-e-majruh se paikan nikla

ग़ज़ल

यूँ ब-मुश्किल दिल-ए-मजरूह से पैकाँ निकला

जिगर बिसवानी

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यूँ ब-मुश्किल दिल-ए-मजरूह से पैकाँ निकला
मैं ये समझा कि तिरे वस्ल का अरमाँ निकला

देख कर उस को दम-ए-नज़्अ' हुईं आँखें बंद
जान के साथ ही दीदार का अरमाँ निकला

अर्सा-ए-हश्र में पुर्सिश जो हुई उस बुत की
मेरे ही दिल में वो ग़ारत-गर-ए-ईमाँ निकला

धूम सहरा-ए-क़यामत की बहुत सुनते थे
ऐ जुनूँ वो भी मिरा एक बयाबाँ निकला

ख़ाक में मिल गए हम जिस की तमन्ना में 'जिगर'
वो लहद पर भी सँभाले हुए दामाँ निकला