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ये ज़मीं हम को मिली बहते हुए पानी के साथ | शाही शायरी
ye zamin hum ko mili bahte hue pani ke sath

ग़ज़ल

ये ज़मीं हम को मिली बहते हुए पानी के साथ

इक़बाल नवेद

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ये ज़मीं हम को मिली बहते हुए पानी के साथ
इक समुंदर पार करना है इसी कश्ती के साथ

उम्र यूँही तो नहीं कटती बगूलों की तरह
ख़ाक उड़ने के लिए मजबूर है आँधी के साथ

जाने किस उम्मीद पर हूँ आबयारी में मगन
एक पत्ता भी नहीं सूखी हुई टहनी के साथ

मैं अभी तक रिज़्क़ चुनने में यहाँ मसरूफ़ हूँ
लौट जाते हैं परिंदे शाम की सुर्ख़ी के साथ

फेंक दे बाहर की जानिब अपने अंदर की घुटन
अपनी आँखों को लगा दे घर की हर खिड़की के साथ

जान जा सकती है ख़ुशबू के तआक़ुब में 'नवेद'
साँप भी होता है अक्सर रात की रानी के साथ