ये वो आँसू हैं जिन से ज़ोहरा आतिशनाक हो जावे
अगर पीवे कोई उन को तो जल कर ख़ाक हो जावे
न जा गुलशन में बुलबुल को ख़जिल मत कर कि डरता हूँ
ये दामन देख कर गुल का गरेबाँ चाक हो जावे
गुनहगारों को है उम्मीद इस अश्क-ए-निदामत से
कि दामन शायद इस आब-ए-रवाँ से पाक हो जावे
अजब क्या है तिरी ख़ुश्की की शामत से जो तू ज़ाहिद
नहाल-ए-ताक बिठलावे तो वो मिसवाक हो जावे
दुआ मस्तों की कहते हैं 'यक़ीं' तासीर रखती है
इलाही सब्ज़ा जितना है जहाँ में ताक हो जावे
ग़ज़ल
ये वो आँसू हैं जिन से ज़ोहरा आतिशनाक हो जावे
इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन