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ये तो बजा कि हम रहें चश्म-ए-करम से दूर दूर | शाही शायरी
ye to baja ki hum rahen chashm-e-karam se dur dur

ग़ज़ल

ये तो बजा कि हम रहें चश्म-ए-करम से दूर दूर

मंज़र अय्यूबी

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ये तो बजा कि हम रहें चश्म-ए-करम से दूर दूर
ख़ुद भी न रह सके मगर आप जो हम से दूर दूर

दैर-ओ-हरम की नफ़रतें लौट चुकीं नशात-ए-ज़ीस्त
राहरवान-ए-राह-ए-नौ दैर-ओ-हरम से दूर दूर

अहल-ए-जहाँ से क्या हमें सिर्फ़ मलाल इस का है
आप भी हम से बद-गुमाँ आप भी हम से दूर दूर

मेरा मज़ाक़-ए-बंदगी तोड़ चुका है रिवायतें
आज जबीं है आप के नक़्श-ए-क़दम से दूर दूर

एक उदास तीरगी क़िस्मत-ए-बाम दूर हुई
जब से तुम्हारी याद है शाम-ए-अलम से दूर दूर

मय-कदा-ए-जहाँ में है एक हुजूम-ए-मय-कशाँ
जाम-ए-सिफ़ाल के क़रीब साग़र-ए-जम से दूर दूर

दिल में ख़याल-ए-मंज़िल-ए-दार-ओ-रसन लिए हुए
आज कोई गुज़र गया कू-ए-सनम से दूर दूर

'मंज़र'-ए-सादा-दिल जिन्हें दोस्त समझ रहे थे तुम
आज वही वफ़ा-सरिश्त हो गए हम से दूर दूर