ये तो बजा कि हम रहें चश्म-ए-करम से दूर दूर
ख़ुद भी न रह सके मगर आप जो हम से दूर दूर
दैर-ओ-हरम की नफ़रतें लौट चुकीं नशात-ए-ज़ीस्त
राहरवान-ए-राह-ए-नौ दैर-ओ-हरम से दूर दूर
अहल-ए-जहाँ से क्या हमें सिर्फ़ मलाल इस का है
आप भी हम से बद-गुमाँ आप भी हम से दूर दूर
मेरा मज़ाक़-ए-बंदगी तोड़ चुका है रिवायतें
आज जबीं है आप के नक़्श-ए-क़दम से दूर दूर
एक उदास तीरगी क़िस्मत-ए-बाम दूर हुई
जब से तुम्हारी याद है शाम-ए-अलम से दूर दूर
मय-कदा-ए-जहाँ में है एक हुजूम-ए-मय-कशाँ
जाम-ए-सिफ़ाल के क़रीब साग़र-ए-जम से दूर दूर
दिल में ख़याल-ए-मंज़िल-ए-दार-ओ-रसन लिए हुए
आज कोई गुज़र गया कू-ए-सनम से दूर दूर
'मंज़र'-ए-सादा-दिल जिन्हें दोस्त समझ रहे थे तुम
आज वही वफ़ा-सरिश्त हो गए हम से दूर दूर
ग़ज़ल
ये तो बजा कि हम रहें चश्म-ए-करम से दूर दूर
मंज़र अय्यूबी