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ये सुम्बुल-ओ-नस्रीं मेरे हैं ये सेहन-ए-गुलिस्ताँ मेरा है | शाही शायरी
ye sumbul-o-nasrin mere hain ye sehn-e-gulistan mera hai

ग़ज़ल

ये सुम्बुल-ओ-नस्रीं मेरे हैं ये सेहन-ए-गुलिस्ताँ मेरा है

परवेज़ शाहिदी

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ये सुम्बुल-ओ-नस्रीं मेरे हैं ये सेहन-ए-गुलिस्ताँ मेरा है
मैं अज़्म-ए-नुमू-ए-गुलशन हूँ इनआम-ए-बहाराँ मेरा है

मैं फ़र्क़ बताऊँ किस किस को एहसास की जब तौफ़ीक़ नहीं
कैफ़-ए-ग़म-ए-दौराँ मेरा है लुत्फ़-ए-ग़म-ए-जानाँ मेरा है

ऐ मौसम-ए-गुल तशवीश न कर अर्बाब-ए-ख़िरद की बातों पर
ये पंजा-ए-वहशत मेरे हैं हर तार-ए-गरेबाँ मेरा है

अहबाब तबाही पर मेरी मग़्मूम न हों मातम न करें
ये गर्दिश-ए-दौराँ मेरी है वो फ़ित्ना-ए-दौराँ मेरा है

ऐ नासेह-ए-मुशफ़िक़! रहने दे अश्कों पे मिरे तन्क़ीद न कर
ये दीदा-ए-गिर्यां मेरे हैं वो गोशा-ए-दामाँ मेरा है

तारीख़-ए-चमन लिखने के लिए क्यूँ हाथ बढ़े हैं गुलचीं के
आग़ाज़-ए-गुलिस्ताँ मेरा था अंजाम-ए-गुलिस्ताँ मेरा है

शिकवों की ज़फ़र-याबी पे मुझे अहबाब मुबारकबाद न दें
वो नीची निगाहें मेरी हैं वो हुस्न-ए-पशीमाँ मेरा है