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ये शफ़क़ चाँद सितारे नहीं अच्छे लगते | शाही शायरी
ye shafaq chand sitare nahin achchhe lagte

ग़ज़ल

ये शफ़क़ चाँद सितारे नहीं अच्छे लगते

इन्दिरा वर्मा

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ये शफ़क़ चाँद सितारे नहीं अच्छे लगते
तुम नहीं हो तो नज़ारे नहीं अच्छे लगते

गहरे पानी में ज़रा आओ उतर कर देखें
हम को दरिया के किनारे नहीं अच्छे लगते

रोज़ अख़बार की जलती हुई सुर्ख़ी पढ़ कर
शहर के लोग तुम्हारे नहीं अच्छे लगते

दर्द में डूबी फ़ज़ा आज बहुत है शायद
ग़म-ज़दा रात है तारे नहीं अच्छे लगते

मेरी तन्हाई से कह दो कि सहारा छोड़े
ज़िंदगी भर ये सहारे नहीं अच्छे लगते