ये सर-बुलंद होते ही शाने से कट गया
मैं मोहतरम हुआ तो ज़माने से कट गया
माँ आज मुझ को छोड़ के गाँव चली गई
मैं आज अपने आईना-ख़ाने से कट गया
जोड़े की शान बढ़ गई महफ़िल महक उठी
लेकिन ये फूल अपने घराने से कट गया
ऐ आँसुओ तुम्हारी ज़रूरत है अब मुझे
कुछ मैल तो बदन का नहाने से कट गया
उस पेड़ से किसी को शिकायत न थी मगर
ये पेड़ सिर्फ़ बीच में आने से कट गया
वर्ना वही उजाड़ हवेली सी ज़िंदगी
तुम आ गए तो वक़्त ठिकाने से कट गया
ग़ज़ल
ये सर-बुलंद होते ही शाने से कट गया
मुनव्वर राना