ये रस्ते में किस से मुलाक़ात कर ली
कहाँ रह गए थे बड़ी रात कर ली
शब-ए-ग़म कभी दर को उठ उठ के देखा
कभी उन की तस्वीर से बात कर ली
हम अहल-ए-जुनूँ का ठिकाना न पूछो
कहीं दिन निकाला कहीं रात कर ली
चले आए मूसा को जल्वा दिखाने
क़यामत से पहले मुलाक़ात कर ली
'क़मर' अपने घर उन को मेहमाँ बुला कर
बिला चाँद के चाँदनी रात कर ली
ग़ज़ल
ये रस्ते में किस से मुलाक़ात कर ली
क़मर जलालवी