ये रात आख़िरी लोरी सुनाने वाली है
मैं थक चुका हूँ मुझे नींद आने वाली है
हँसी मज़ाक़ की बातें यहीं पे ख़त्म हुईं
अब इस के बअ'द कहानी रुलाने वाली है
अकेला मैं ही नहीं जा रहा हूँ बस्ती से
ये रौशनी भी मिरे साथ जाने वाली है
जो नक़्श हम ने बनाए थे सिर्फ़ वो ही नहीं
हवा-ए-दश्त हमें भी मिटाने वाली है
अभी तो कोई भी नाम-ओ-निशाँ नहीं उस का
हमें जो मौज किनारे लगाने वाली है
हर एक शख़्स का ये हाल है कि जैसे यहाँ
ज़मीन आख़िरी चक्कर लगाने वाली है
ग़ज़ल
ये रात आख़िरी लोरी सुनाने वाली है
अज़हर अब्बास