ये रास्ते में जो शब खड़ी है हटा रहा हूँ मुआफ़ करना
बग़ैर इजाज़त मैं दिन को बस्ती में ला रहा हूँ मुआफ़ करना
ज़मीन बंजर थी तुम से पहले पहाड़ ख़ामोश दश्त ख़ाली
कहानियो में तुम्हें कहानी सुना रहा हूँ मुआफ़ करना
कुछ इतने कल जम्अ हो गए हैं कि आज कम पड़ता जा रहा है
मैं इन परिंदों को अपनी छत से उड़ा रहा हूँ मुआफ़ करना
ये बे-यक़ीनी अजब नशा है ये बे-निशानी अजब सकूँ है
मैं इन अँधेरों को रौशनी से बचा रहा हूँ मुआफ़ करना
इन्हें सितारों के सब लताइफ़ सुना चुका हूँ हँसी हँसी में
और अब चराग़ों से अपना दामन बचा रहा हूँ मुआफ़ करना
मुझे बताने का फ़ाएदा क्या मकीन क्या थे मकान क्या हैं
मैं उस गली से न आ रहा हूँ न जा रहा हूँ मुआफ़ करना

ग़ज़ल
ये रास्ते में जो शब खड़ी है हटा रहा हूँ मुआफ़ करना
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल