ये नहीं वो रहगुज़र कुछ और है
मेरे ख़्वाबों का नगर कुछ और है
रंग थे कल आँख में कुछ और ही
आज भी रक़्स-ए-शरर कुछ और है
लब पे मेरे है तबस्सुम का ग़ुबार
हाँ मगर ज़ख़्म-ए-जिगर कुछ और है
ख़ुद के होने का गुमाँ है भी तो क्या
सामने अपने मगर कुछ और है
शब में थीं चारों तरफ़ शादाबियाँ
हादिसा वक़्त-ए-सहर कुछ और है
हो गया है ख़त्म 'आदिल' रास्ता
पर तिरा अज़्म-ए-सफ़र कुछ और है
ग़ज़ल
ये नहीं वो रहगुज़र कुछ और है
आदिल हयात