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ये नहीं वो रहगुज़र कुछ और है | शाही शायरी
ye nahin wo rahguzar kuchh aur hai

ग़ज़ल

ये नहीं वो रहगुज़र कुछ और है

आदिल हयात

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ये नहीं वो रहगुज़र कुछ और है
मेरे ख़्वाबों का नगर कुछ और है

रंग थे कल आँख में कुछ और ही
आज भी रक़्स-ए-शरर कुछ और है

लब पे मेरे है तबस्सुम का ग़ुबार
हाँ मगर ज़ख़्म-ए-जिगर कुछ और है

ख़ुद के होने का गुमाँ है भी तो क्या
सामने अपने मगर कुछ और है

शब में थीं चारों तरफ़ शादाबियाँ
हादिसा वक़्त-ए-सहर कुछ और है

हो गया है ख़त्म 'आदिल' रास्ता
पर तिरा अज़्म-ए-सफ़र कुछ और है