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ये नाम मुमकिन नहीं रहेगा मक़ाम मुमकिन नहीं रहेगा | शाही शायरी
ye nam mumkin nahin rahega maqam mumkin nahin rahega

ग़ज़ल

ये नाम मुमकिन नहीं रहेगा मक़ाम मुमकिन नहीं रहेगा

नोशी गिलानी

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ये नाम मुमकिन नहीं रहेगा मक़ाम मुमकिन नहीं रहेगा
ग़ुरूर लहजे में आ गया तो कलाम मुमकिन नहीं रहेगा

ये बर्फ़-मौसम जो शहर-ए-जाँ में कुछ और लम्हे ठहर गया तो
लहू का दिल की किसी गली में क़याम मुमकिन नहीं रहेगा

तुम अपनी साँसों से मेरी साँसें अलग तो करने लगे हो लेकिन
जो काम आसाँ समझ रहे हो वो काम मुमकिन नहीं रहेगा

वफ़ा का काग़ज़ तो भीग जाएगा बद-गुमानी की बारिशों में
ख़तों की बातें तो ख़्वाब होंगी पयाम मुमकिन नहीं रहेगा

ये हम मोहब्बत में ला-तअल्लुक़ से हो रहे हैं तू देख लेना
दुआएँ तो ख़ैर कौन देगा सलाम मुमकिन नहीं रहेगा