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ये मोहब्बत का सिला था इश्क़ का अंजाम था | शाही शायरी
ye mohabbat ka sila tha ishq ka anjam tha

ग़ज़ल

ये मोहब्बत का सिला था इश्क़ का अंजाम था

मोहम्मद उस्मान आरिफ़

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ये मोहब्बत का सिला था इश्क़ का अंजाम था
फूल का हँसना ही उस की मौत का पैग़ाम था

ग़म न देते आप तो राहत से किस को काम था
ज़िंदगी की गर्दिशों के साथ दौर-ए-जाम था

ठोकरें खाते गए लब पर तुम्हारा नाम था
हश्र का मंज़र था राह-ए-इश्क़ में जो गाम था

आप क्यूँ आँसू बहाएँ मेरे हाल-ए-ज़ार पर
इश्क़ का निकला वही अंजाम जो अंजाम था

बन गया हर साँस क़ातिल रंज है तो बस यही
ज़िंदगी ने मार डाला मौत पर इल्ज़ाम था

था तुम्हारे सामने बे-कैफ़ रंग-ए-गुलिस्ताँ
दीदा-ए-नर्गिस तो कहने को छलकता जाम था

देखने वाले कहेंगे मेरी बर्बादी का हाल
आशियाना जल रहा था मैं असीर-ए-दाम था

गिर्या-ए-शबनम से आती है गुलों में ताज़गी
मेरा रोना भी किसी के ऐश का पैग़ाम था

बर्क़ के क्या हाथ आया क्या मिला सय्याद को
चार तिनकों के न रहने से चमन बदनाम था

जलने वाला ही समझ सकता है दिल की आग को
हिज्र में 'आरिफ़' मिरा हमदम चराग़-ए-शाम था