ये मोहब्बत का फ़साना भी बदल जाएगा
वक़्त के साथ ज़माना भी बदल जाएगा
आज-कल में कोई तूफ़ान है उठने वाला
हम ग़रीबों का ठिकाना भी बदल जाएगा
मुझ से लिल्लाह न सरकार छुड़ाएँ दामन
आप बदले तो ज़माना भी बदल जाएगा
फिर बहार आई है गुलशन का नज़ारा कर लो
वर्ना ये वक़्त सुहाना भी बदल जाएगा
मुफ़्लिसी मसनद-ए-ज़रदार पे क़ाबिज़ होगी
महल बदलेगा ज़माना भी बदल जाएगा
किस को मालूम था अंजाम ये होगा 'अज़हर'
घर बदलते ही घराना भी बदल जाएगा
ग़ज़ल
ये मोहब्बत का फ़साना भी बदल जाएगा
अज़हर लखनवी