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ये कुछ बदलाव सा अच्छा लगा है | शाही शायरी
ye kuchh badlaw sa achchha laga hai

ग़ज़ल

ये कुछ बदलाव सा अच्छा लगा है

शारिक़ कैफ़ी

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ये कुछ बदलाव सा अच्छा लगा है
हमें इक दूसरा अच्छा लगा है

समझना है उसे नज़दीक जा कर
जिसे मुझ सा बुरा अच्छा लगा है

ये क्या हर वक़्त जीने की दुआएँ
यहाँ ऐसा भी क्या अच्छा लगा है

सफ़र तो ज़िंदगी भर का है लेकिन
ये वक़्फ़ा सा ज़रा अच्छा लगा है

मिरी नज़रें भी हैं अब आसमाँ पर
कोई महव-ए-दुआ अच्छा लगा है

हुए बरबाद जिस के इश्क़ में हम
वो अब जा कर ज़रा अच्छा लगा है

वो सूरज जो मिरा दुश्मन था दिन भर
मुझे ढलता हुआ अच्छा लगा है

कोई पूछे तो क्या बतलाएँगे हम
कि इस मंज़र में क्या अच्छा लगा है