ये किस के नाम से रौशन था गोश्वारा-ए-शब
कि आसमाँ पे लरज़ता रहा सितारा-ए-शब
तमाम रू-ए-निगारीं दिल-ओ-दर-ओ-दीवार
कि याद-ए-मेहर-ए-नज़र हासिल-ए-ख़सारा-ए-शब
ख़ुशा वो सरख़ुशी-ए-साअ'त-ए-शब-दीदार
कुजा फ़रोग़-मह-ओ-मय कुजा नज़ारा-ए-शब
शब-ए-ग़म-ओ-बर-ए-शीरीन-ए-जाँ सलाम तुझे
ख़याल अब्र से निकला है माह-पारा-ए-शब
नज़र उलझती रही ख़ाल-ओ-ज़ुल्फ़ से ता-देर
समझ में आ गया मफ़हूम-ए-इस्तारा-ए-शब
फ़िराक़-ए-यार से बेगानगी नहीं साबित
ख़याल-ए-वस्ल भी होगा जो हो इशारा-ए-शब

ग़ज़ल
ये किस के नाम से रौशन था गोश्वारा-ए-शब
सय्यद अमीन अशरफ़