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ये ख़बर आई है आज इक मुर्शिद-ए-अकमल के पास | शाही शायरी
ye KHabar aai hai aaj ek murshid-e-akmal ke pas

ग़ज़ल

ये ख़बर आई है आज इक मुर्शिद-ए-अकमल के पास

शौक़ बहराइची

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ये ख़बर आई है आज इक मुर्शिद-ए-अकमल के पास
उन को धमकाया किसी ने रेलवे-सिगनल के पास

हुस्न-ए-आवारा का ऐ हमदम भला क्या ए'तिबार
आज भटनागर के बस में है तो कल मित्तल के पास

उन की वहशत से ये ज़ाहिर हो रहा है ख़ुद-ब-ख़ुद
ये उसी मौज़ा में रहते हैं जो है मंगल के पास

बाग़बाँ की अब तवज्जोह है गुलिस्ताँ की तरफ़
पौदे बढ़ के ख़ुद लगाए हैं कई कटहल के पास

उठ गया बज़्म-ए-तरब से वो रक़ीब-ए-रू-सियाह
रफ़्ता रफ़्ता हाथ जब पहुँचा मिरा चप्पल के पास

रज़्म-गह में उन से नज़रें लड़ रही हैं बार बार
हो रहा है एक दंगल और उसी दंगल के पास

लोग उन की बज़्म में रह कर भी हैं महरूम-ए-दीद
जाँ-ब-लब हैं प्यास से बैठे हुए हैं नल के पास

देखिए ये बादा-ए-रंगीं की अदना सी कशिश
शैख़-साहिब और खिसक कर आ गए बोतल के पास

नासेह-ए-नादाँ का शिकवा करना है बिल्कुल फ़ुज़ूल
वो तो पागल है कोई क्यूँ जाए फिर पागल के पास

हिम्मत-अफ़्ज़ाई न जब उम्माल-ए-मामूली ने की
पहुँची रिश्वत अफ़सरान-ए-दर्जा-ए-अव्वल के पास

'शौक़'-साहिब मूनिस-ए-तन्हाई की हाजत हो गर
तो किसी दिन बे-तकल्लुफ़ चलिए सेवा-दल के पास