ये कौन आता है तन्हाइयों में जाम लिए
जिलौ में चाँदनी रातों का एहतिमाम लिए
चटक रही है किसी याद की कली दिल में
नज़र में रक़्स-ए-बहाराँ की सुब्ह-ओ-शाम लिए
हुजूम-ए-बादा-ओ-गुल में हुजूम-ए-याराँ में
किसी निगाह ने झुक कर मिरे सलाम लिए
किसी ख़याल की ख़ुशबू किसी बदन की महक
दर-ए-क़फ़स पे खड़ी है सबा पयाम लिए
महक महक के जगाती रही नसीम-ए-सहर
लबों पे यार-ए-मसीहा-नफ़स का नाम लिए
बजा रहा था कहीं दूर कोई शहनाई
उठा हूँ आँखों में इक ख़्वाब-ए-ना-तमाम लिए
ग़ज़ल
ये कौन आता है तन्हाइयों में जाम लिए
मख़दूम मुहिउद्दीन