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ये कैसा कार-ए-दुनिया हो रहा है | शाही शायरी
ye kaisa kar-e-duniya ho raha hai

ग़ज़ल

ये कैसा कार-ए-दुनिया हो रहा है

नबील अहमद नबील

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ये कैसा कार-ए-दुनिया हो रहा है
लहू इंसाँ का सस्ता हो रहा है

ज़रा हालात क्या बदले हमारे
जो अपना था पराया हो रहा है

दिलों का मैल बढ़ता जा रहा है
बशर अंदर से काला हो रहा है

घटाएँ ख़ुश्क होती जा रही हैं
जो दरिया था वो सहरा हो रहा है

यही होता रहा है हम से अक्सर
हमारे साथ जैसा हो रहा है

क़दम पड़ने लगे हैं सब के उल्टे
हर इक रस्ता ही टेढ़ा हो रहा है

'नबील'-अहमद कभी देखा है तुम ने
बशर कितना अकेला हो रहा है