ये कब कहा था नज़ारों से ख़ौफ़ आता है
मुझे तो चाँद सितारों से ख़ौफ़ आता है
में दुश्मनों के किसी वार से नहीं डरता
मुझे तो अपने ही यारों से ख़ौफ़ आता है
ख़िज़ाँ का जब्र तो सीने पे रोक लेते हैं
हमें उदास बहारों से ख़ौफ़ आता है
मिले हैं दोस्तो बैसाखियों से ग़म इतने
मिरे बदन को सहारों से ख़ौफ़ आता है
मैं इल्तिफ़ात की ख़ंदक़ से दूर रहता हूँ
तअ'ल्लुक़ात के ग़ारों से ख़ौफ़ आता है

ग़ज़ल
ये कब कहा था नज़ारों से ख़ौफ़ आता है
वसी शाह