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ये जो रब्त रू-ब-ज़वाल है ये सवाल है | शाही शायरी
ye jo rabt ru-ba-zawal hai ye sawal hai

ग़ज़ल

ये जो रब्त रू-ब-ज़वाल है ये सवाल है

शाहिद लतीफ़

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ये जो रब्त रू-ब-ज़वाल है ये सवाल है
मुझे इस का कितना मलाल है ये सवाल है

ये जो सर पे मेरे वबाल है ये सवाल है
ये जो गिर्द-ओ-पेश का हाल है ये सवाल है

मुझे क्या ग़रज़ मिरे दुश्मनों का हदफ़ है क्या
मिरे पास कौन सी ढाल है ये सवाल है

मिरे सारे ख़्वाब हैं मो'तबर मैं हूँ दर-ब-दर
ये उरूज है कि ज़वाल है ये सवाल है

मिरे हाथ शल मिरे पाँव शल मिरी अक़्ल गुम
कोई और इतना निढाल है ये सवाल है

मिरा माज़ी कितना अमीर था मैं ग़रीब हूँ
कोई ये भी माज़ी-ओ-हाल है ये सवाल है

कोई है जो मुझ सा अज़ीम हो जो फ़हीम हो
ये सवाल कोई सवाल है ये सवाल है

नए अहद की ये तरक़्क़ियाँ ये तजल्लियाँ
कोई इस में मेरा कमाल है ये सवाल है

वो सदा न थी वो तो जज़्ब था वो तो इश्क़ था
मिरी सफ़ में कोई बिलाल है ये सवाल है