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ये जमाल क्या ये जलाल क्या ये उरूज क्या ये ज़वाल क्या | शाही शायरी
ye jamal kya ye jalal kya ye uruj kya ye zawal kya

ग़ज़ल

ये जमाल क्या ये जलाल क्या ये उरूज क्या ये ज़वाल क्या

सादुल्लाह शाह

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ये जमाल क्या ये जलाल क्या ये उरूज क्या ये ज़वाल क्या
वो जो पेड़ जड़ से उखड़ गया उसे मौसमों का मलाल क्या

वो जो लम्हा लम्हा बिखर गया वो जो अपनी हद से गुज़र गया
उसे फ़िक्र-ए-शाम-ओ-सहर हो क्या उसे रंजिश-ए-मह-ओ-साल क्या

वो जो बे-नियाज़ सा हो गया वो जो एक राज़ सा हो गया
जिसे कुछ ग़रज़ ही नहीं रही उसे दस्त-ए-हर्फ़-ए-सवाल क्या

हुआ रेज़ा रेज़ा जो दिल तिरा उसे जोड़ जोड़ के मत दिखा
वो जो अपने हुस्न में मस्त है उसे आइने का ख़याल क्या

वही हिज्र रात की बात है वही चाँद-तारों का साथ है
जो फ़िराक़ से हुआ आश्ना उसे आरज़ू-ए-विसाल क्या

किसी और से करें क्यूँ गिला हमें अपने-आप से दुख मिला
वो जो दर्द-ए-दिल से हो आश्ना उसे दुनिया-भर का वबाल क्या

वही गर्द गर्द ग़ुबार है वही चारों ओर फ़िशार है
वो जो ख़ुद को भी नहीं जानता वो हो मेरा वाक़िफ़-ए-हाल क्या

उसे 'साद' कैसा बताएँ हम उसे किस से जा के मिलाएँ हम
वो तो ख़ुद सरापा मिसाल है ये गुलाब क्या ये ग़ज़ाल क्या