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ये जगह अहल-ए-जुनूँ अब नहीं रहने वाली | शाही शायरी
ye jagah ahl-e-junun ab nahin rahne wali

ग़ज़ल

ये जगह अहल-ए-जुनूँ अब नहीं रहने वाली

शहरयार

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ये जगह अहल-ए-जुनूँ अब नहीं रहने वाली
फ़ुर्सत-ए-इश्क़ मयस्सर कहाँ पहले वाली

कोई दरिया हो कहीं जो मुझे सैराब करे
एक हसरत है जो पूरी नहीं होने वाली

वक़्त कोशिश करे मैं चाहूँ मगर याद तिरी
धुँदली हो सकती है दिल से नहीं मिटने वाली

अब मिरे ख़्वाबों की बारी है यही लगता है
नींद तो छिन चुकी कब की मिरे हिस्से वाली

इन दिनों मैं भी हूँ कुछ कार-ए-जहाँ में मसरूफ़
बात तुझ में भी नहीं रह गई पहले वाली