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ये हादिसा भी सर-ए-रहगुज़ार होना था | शाही शायरी
ye hadisa bhi sar-e-rahguzar hona tha

ग़ज़ल

ये हादिसा भी सर-ए-रहगुज़ार होना था

नबील अहमद नबील

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ये हादिसा भी सर-ए-रहगुज़ार होना था
तिरी तलाश में मुझ को ग़ुबार होना था

उचक लिया है उन्हें भी ख़िज़ाँ के मौसम ने
वो फूल-पात कि जिन को बहार होना था

हमें ख़बर थी तिरी तर्ज़-ए-बादशाही से
हुनर-वरों को ही बे-इख़्तियार होना था

उन्ही के हाथ गरेबान में पड़े हुए हैं
जिन्हें सदा से ही ख़िदमत-गुज़ार होना था

गुमाँ की धूल मिरे दिल पे मल गया है वही
वो शख़्स जिस को मिरा ए'तिबार होना था

भरोसा ग़ैर की छाँव पे हम न करते अगर
सरों पे साया-ए-परवरदिगार होना था

बदल दिया उन्हें मिट्टी के बर्तनों में 'नबील'
वो चीज़ें जिन को बहुत पाएदार होना था