ये दिल दुनिया से बाज़ आने लगा है
कि अब सीने में राज़ आने लगा है
अज़ाँ होने लगी मेहराब-ए-जाँ में
मिरा वक़्त-ए-नमाज़ आने लगा है
यूँ ही इक ज़ख़्म पर दे दी थी इस्लाह
सो अब ले कर बयाज़ आने लगा है
बहुत से ज़ख़्म थे अब सिर्फ़ इक ज़ख़्म
लहू में इर्तिकाज़ आने लगा है
बहुत अब हो चुकी दुनिया से यारी
उधर से ए'तिराज़ आने लगा है
बहुत कारी है अब के अक़्ल का वार
जुनूँ को इम्तियाज़ आने लगा है

ग़ज़ल
ये दिल दुनिया से बाज़ आने लगा है
तहज़ीब हाफ़ी