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ये और बात कि मौजूद अपने घर में हूँ | शाही शायरी
ye aur baat ki maujud apne ghar mein hun

ग़ज़ल

ये और बात कि मौजूद अपने घर में हूँ

नासिर अली सय्यद

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ये और बात कि मौजूद अपने घर में हूँ
मैं तेरी सम्त मगर मुस्तक़िल सफ़र में हूँ

न जाने अगली घड़ी क्या से क्या में बन जाऊँ
अभी तो चाक पे हूँ दस्त-ए-कूज़ा-गर में हूँ

मैं अपनी फ़िक्र की तज्सीम किस तरह से करूँ
बुरीदा-दस्त हूँ और शहर-ए-बे-हुनर में हूँ

न जाने कौन सा मौसम मुझे हरा कर दे
नुमू के वास्ते बे-ताब हूँ शजर में हूँ

ये दोस्ती भी अजब चोब-ए-ख़ुश्क है 'नासिर'
निभा रहा हूँ मगर टूटने के डर में हूँ