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ये अब्र-ओ-बाद ये तूफ़ान ये अँधेरी रात | शाही शायरी
ye abr-o-baad ye tufan ye andheri raat

ग़ज़ल

ये अब्र-ओ-बाद ये तूफ़ान ये अँधेरी रात

सलाम मछली शहरी

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ये अब्र-ओ-बाद ये तूफ़ान ये अँधेरी रात
अब एक मोड़ पे आ जा रफ़ीक़-ए-राह-ए-हयात

हवा के दोश पे मौज-ए-अजल ख़िरामाँ है
मरीज़-ए-दहर पे तारी हैं नज़्अ' के लम्हात

हयात एक तख़य्युल नहीं हक़ीक़त है
मुझे बताई है आदम के अज़्म ने ये बात

मिरे रफ़ीक़ मोहब्बत के दिन भी आएँगे
वही हसीन सवेरा वही कुँवारी रात

वही गुलाब के मौसम वही शराब के दौर
वही शरीर घटाएँ वही भरी बरसात

सुनाई जाएगी कोयल को हम-नवा कर के
हसीन फूलों को भौँरों की एक राज़ की बात

ग़ज़ल की डाल सजा कर चमन की दुल्हन को
'सलाम' नज़्र करेगा सुहाग की सौग़ात