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यही होना था और हुआ जानाँ | शाही शायरी
yahi hona tha aur hua jaanan

ग़ज़ल

यही होना था और हुआ जानाँ

आरिफ़ इशतियाक़

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यही होना था और हुआ जानाँ
हो गए हम जुदा जुदा जानाँ

कोई आसाँ न थी तिरी फ़ुर्क़त
मैं हक़ीक़त में रो पड़ा जानाँ

तिरे अंदर हूँ मैं ही मैं हर सू
मिरे अंदर तू जा-ब-जा जानाँ

हँस के मिलता है हर कोई ऐसे
जैसे हर शख़्स हो ख़फ़ा जानाँ

अब मैं चलता हूँ चल ख़ुदा-हाफ़िज़
शहर ये वो नहीं रहा जानाँ