यही होना था और हुआ जानाँ
हो गए हम जुदा जुदा जानाँ
कोई आसाँ न थी तिरी फ़ुर्क़त
मैं हक़ीक़त में रो पड़ा जानाँ
तिरे अंदर हूँ मैं ही मैं हर सू
मिरे अंदर तू जा-ब-जा जानाँ
हँस के मिलता है हर कोई ऐसे
जैसे हर शख़्स हो ख़फ़ा जानाँ
अब मैं चलता हूँ चल ख़ुदा-हाफ़िज़
शहर ये वो नहीं रहा जानाँ
ग़ज़ल
यही होना था और हुआ जानाँ
आरिफ़ इशतियाक़