यही बस एक दुआ माँगना नहीं आता
वफ़ा के बदले वफ़ा माँगना नहीं आता
हमारा काम मोहब्बत से पेश आना है
किसी का नाम पता माँगना नहीं आता
दरीचा खोल दिया है घुटन से बचने को
मगर ज़बाँ से हवा माँगना नहीं आता
कहीं मिले तो ये कहना मिरे मसीहा से
मरीज़-ए-ग़म को दवा माँगना नहीं आता
ये ख़ामुशी कोई तूफ़ाँ ज़रूर लाएगी
ग़रीब चुप हैं तो क्या माँगना नहीं आता
ज़रूरतों के सिवा भी ज़रूर मिलता मगर
ज़रूरतों से सिवा माँगना नहीं आता
हज़ार बार कहा दिल से माँग ले कुछ तो
यही जवाब मिला माँगना नहीं आता
हमेशा ख़ैर के तालिब हैं हम हमें 'आलम'
तिलिस्म-ए-होश-रुबा माँगना नहीं आता
ग़ज़ल
यही बस एक दुआ माँगना नहीं आता
सीन शीन आलम