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यहाँ मज़बूत से मज़बूत लोहा टूट जाता है | शाही शायरी
yahan mazbut se mazbut loha TuT jata hai

ग़ज़ल

यहाँ मज़बूत से मज़बूत लोहा टूट जाता है

हसीब सोज़

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यहाँ मज़बूत से मज़बूत लोहा टूट जाता है
कई झूटे इकट्ठे हों तो सच्चा टूट जाता है

न इतना शोर कर ज़ालिम हमारे टूट जाने पर
कि गर्दिश में फ़लक से भी सितारा टूट जाता है

तसल्ली देने वाले तो तसल्ली देते रहते हैं
मगर वो क्या करे जिस का भरोसा टूट जाता है

किसी से इश्क़ करते हो तो फिर ख़ामोश रहिएगा
ज़रा सी ठेस से वर्ना ये शीशा टूट जाता है