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यारो घर आई शाम चलो मय-कदे चलें | शाही शायरी
yaro ghar aai sham chalo mai-kade chalen

ग़ज़ल

यारो घर आई शाम चलो मय-कदे चलें

कृष्ण बिहारी नूर

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यारो घर आई शाम चलो मय-कदे चलें
याद आ रहे हैं जाम चलो मय-कदे चलें

दैर-ओ-हरम पे खुल के जहाँ बात हो सके
है एक ही मकान चलो मय-कदे चलें

अच्छा नहीं पिएँगे जो पीना हराम है
जीना न हो हराम चलो मय-कदे चलें

यारो जो होगा देखेंगे ग़म से तो हो नजात
ले कर ख़ुदा का नाम चलो मय-कदे चलें

साक़ी भी है शराब भी आज़ादियाँ भी हैं
सब कुछ है इंतिज़ाम चलो मय-कदे चलें

ऐसी फ़ज़ा में लुत्फ़-ए-इबादत न आएगा
लेना है उस का नाम चलो मय-कदे चलें

फ़ुर्सत ग़मों से पाना अगर है तो आओ 'नूर'
सब को करें सलाम चलो मय-कदे चलें