यारो घर आई शाम चलो मय-कदे चलें
याद आ रहे हैं जाम चलो मय-कदे चलें
दैर-ओ-हरम पे खुल के जहाँ बात हो सके
है एक ही मकान चलो मय-कदे चलें
अच्छा नहीं पिएँगे जो पीना हराम है
जीना न हो हराम चलो मय-कदे चलें
यारो जो होगा देखेंगे ग़म से तो हो नजात
ले कर ख़ुदा का नाम चलो मय-कदे चलें
साक़ी भी है शराब भी आज़ादियाँ भी हैं
सब कुछ है इंतिज़ाम चलो मय-कदे चलें
ऐसी फ़ज़ा में लुत्फ़-ए-इबादत न आएगा
लेना है उस का नाम चलो मय-कदे चलें
फ़ुर्सत ग़मों से पाना अगर है तो आओ 'नूर'
सब को करें सलाम चलो मय-कदे चलें
ग़ज़ल
यारो घर आई शाम चलो मय-कदे चलें
कृष्ण बिहारी नूर

