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यार उठ गए दुनिया से अग़्यार की बारी है | शाही शायरी
yar uTh gae duniya se aghyar ki bari hai

ग़ज़ल

यार उठ गए दुनिया से अग़्यार की बारी है

वली उज़लत

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यार उठ गए दुनिया से अग़्यार की बारी है
गुल सैर-ए-चमन कर गए अब ख़ार की बारी है

ज़ाहिद ने इबादत छोड़ उस ज़ुल्फ़ से उलझा है
तस्बीह की शैख़ी गई ज़ुन्नार की बारी है

उस काकुल-ए-मुश्कीं की बू हुई है परेशाँ आ
सब शहर-ए-ख़ुतन लुट गए तातार की बारी है

गुलशन में ख़िरामाँ हो अब बुर्क़ा उठाया है
सब गिर गया सर्विस्ताँ गुलज़ार की बारी है

कर ज़ख़्मी निगाहों से अब दिल पे उठाया हाथ
नेज़ों की गई नौबत तरवार की बारी है

दिल पर हैं जहाँ के सब बाहम की कुदूरत से
आईनों की साफ़ी गई ज़ंगार की बारी है

झड़ गए वो तबस्सुम से गुल ग़ुंचे खड़े हैं सर्व
तमकीं ने चमन लूटा रफ़्तार की बारी है

उन ज़ुल्फ़ों के अक़रब ने दिल मेरा डसा 'उज़लत'
पीछे पड़ी है चोटी अब मार की बारी है