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यार अब है सो कुछ अजब है रे | शाही शायरी
yar ab hai so kuchh ajab hai re

ग़ज़ल

यार अब है सो कुछ अजब है रे

क़ाज़ी महमूद बेहरी

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यार अब है सो कुछ अजब है रे
अब जो सब है सो कुछ अजब है रे

या'नी नासूत यक अजब है मक़ाम
यू अजब है सो कुछ अजब है रे

एक कुछ बोलता है यक ख़ामोश
पन तलब है सो कुछ अजब है रे

अब तो है दिल-बराँ की मन बे-दिल
जाँ-ब-लब है सो कुछ अजब है रे

रंग अछो ज़ुल्फ़ अछो ओ ज़ेबा-ख़ाल
ओ जो छब है सो कुछ अजब है रे

गोंद राखी कूँ बी करामत जान
जब के तब है सो कुछ अजब है रे

'बहरिया' बे-अदब है बे-ईमान
कि अदब है सो कुछ अजब है रे