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यादगार-ए-ज़माना हैं हम लोग | शाही शायरी
yaadgar-e-zamana hain hum log

ग़ज़ल

यादगार-ए-ज़माना हैं हम लोग

मुंतज़िर लखनवी

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यादगार-ए-ज़माना हैं हम लोग
सुन रखो तुम फ़साना हैं हम लोग

ख़ल्क़ से हो गए हैं बेगाने
शायद उस के यगाना हैं हम लोग

क्यूँ न हर गुल पे होवें ज़मज़मा-संज
बुलबुल-ए-ख़ुश-तराना हैं हम लोग

सब के मख़दूम हैं वले तेरे
ख़ादिम-ए-आस्ताना हैं हम लोग

तीर-ए-मिज़्गाँ है क्या बला जिस के
जान-ओ-दिल से निशाना हैं हम लोग

यार आगे निकल गए हैं कई
पीछे उन के रवाना हैं हम लोग

अपने जी में समझ तू ज़ुल्फ़-ए-दराज़
क़बिल-ए-ताज़ियाना हैं हम लोग

'मुंतज़िर' शक्ल-ए-बुलबुल-ए-वहशी
दुश्मन-ए-आशियाना हैं हम लोग