यादगार-ए-ज़माना हैं हम लोग
सुन रखो तुम फ़साना हैं हम लोग
ख़ल्क़ से हो गए हैं बेगाने
शायद उस के यगाना हैं हम लोग
क्यूँ न हर गुल पे होवें ज़मज़मा-संज
बुलबुल-ए-ख़ुश-तराना हैं हम लोग
सब के मख़दूम हैं वले तेरे
ख़ादिम-ए-आस्ताना हैं हम लोग
तीर-ए-मिज़्गाँ है क्या बला जिस के
जान-ओ-दिल से निशाना हैं हम लोग
यार आगे निकल गए हैं कई
पीछे उन के रवाना हैं हम लोग
अपने जी में समझ तू ज़ुल्फ़-ए-दराज़
क़बिल-ए-ताज़ियाना हैं हम लोग
'मुंतज़िर' शक्ल-ए-बुलबुल-ए-वहशी
दुश्मन-ए-आशियाना हैं हम लोग
ग़ज़ल
यादगार-ए-ज़माना हैं हम लोग
मुंतज़िर लखनवी