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याद माज़ी के चराग़ों को बुझाया न करो | शाही शायरी
yaad mazi ke charaghon ko bujhaya na karo

ग़ज़ल

याद माज़ी के चराग़ों को बुझाया न करो

हमीद अलमास

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याद माज़ी के चराग़ों को बुझाया न करो
तुम भी तन्हा न रहो मुझ को भी तन्हा न करो

नफ़स-ए-बाद-ए-सबा हाथ न आएगा कभी
गुल की उड़ती हुई ख़ुश्बू का अहाता न करो

हम ने देखा है दम-ए-आख़िर-ए-शब ख़्वाब कोई
तुम से कहना है कि ता'बीर का चर्चा न करो

कुछ न कुछ होगा मिरे ख़ाक उड़ाने का सबब
जाने वालो मुझे आवाज़ा-ए-सहरा न करो

यूँ न महसूस हो अफ़्लाक-नशीं है कोई
इस क़दर दूर से तो मुझ को पुकारा न करो