याद करो जब रात हुई थी
तुम से कोई बात हुई थी
कह सकता था कौन किसी से
वो शक्ल-ए-हालात हुई थी
सब से नाता तोड़ के यकजा
तेरी मेरी ज़ात हुई थी
इंसानों ने हक़ माँगा था
और फ़क़त ख़ैरात हुई थी
उस की कम-आमेज़ी से मेरी
तहज़ीब-ए-जज़्बात हुई थी
मरने वाला ख़ुद रूठा था
या नाराज़ हयात हुई थी
उसे ज़रा सा ख़त लिखने पर
ख़र्च तमाम दवात हुई थी
आज 'शुऊर' सबा की आमद
कितनी बड़ी सौग़ात हुई थी
ग़ज़ल
याद करो जब रात हुई थी
अनवर शऊर