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याद है अब तक मुझे अहद-ए-जवानी याद है | शाही शायरी
yaad hai ab tak mujhe ahd-e-jawani yaad hai

ग़ज़ल

याद है अब तक मुझे अहद-ए-जवानी याद है

शिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी

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याद है अब तक मुझे अहद-ए-जवानी याद है
दिल के बसने और उजड़ने की कहानी याद है

याद है अब तक किसी की मेहरबानी याद है
आरिज़ों पर अपने अश्कों की रवानी याद है

बिस्तर-ए-हिरमाँ पे वो पहलू बदलना बार बार
ग़म की रातों में वो क़हर-ए-आसमानी याद है

रूठने और रूठ कर मनने के हर अंदाज़ की
मेहरबानी याद है ना-मेहरबानी याद है

याद है अब तक मुझे वो आलम-ए-गुफ़्त-ओ-शुनीद
रू-ब-रू-ए-दोस्त पैग़ाम-ए-ज़बानी याद है

याद है अब तक तिरे मक्तूब-ए-रंगीं की बहार
सादा सादा काग़ज़ों पर गुल-फ़िशानी याद है

बार बार उठना सर-ए-महफ़िल निगाह-ए-नाज़ का
गर्दिश-ए-जाम-ए-शराब-ए-अर्ग़वानी याद है

क़ुर्ब की घड़ियों में गाहे हिज्र के लम्हात में
कामरानी याद है ना-कामरानी याद है

बारगाह-ए-हुस्न में ऐ 'बर्क़' फ़र्त-ए-रोब से
याद है अब तक वो अपनी बे-ज़बानी याद है