या-रब कहाँ गया है वो सर्व-ए-शोख़-रा'ना
है चोब-ए-ख़ुश्क जिस बिन मेरी नज़र में तूबा
दीदार दे शिताबी जलने की ताब नीं है
इस हिज्र की अगन सीं दोज़ख़ की आग औला
तौक़-ए-गुलू-ए-दिल है ज़ुल्फ़-ए-सनम का हर ख़म
मशहूर ये मसल है यक सर हज़ार सौदा
है ख़त्म यार-ए-जानी तेरे दहन की तंगी
कहने की बात नीं है बारीक है मुअम्मा
ऐ गुल-बदन नज़र कर दाग़-ए-जिगर कूँ मेरे
गर आरज़ू है तुझ कूँ गुलज़ार का तमाशा
मस्कन हुआ है मेरा जब सीं तिरी गली में
ऐ गुल-एज़ार तब सीं जन्नत की नीं तमन्ना
है ऐ 'सिराज' हर शब महताब-रू के ग़म में
आँसू का मेरे झमका ज्यूँ ख़ोशा-ए-सुरय्या
ग़ज़ल
या-रब कहाँ गया है वो सर्व-ए-शोख़-रा'ना
सिराज औरंगाबादी