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या-रब ग़म-ए-हिज्राँ में इतना तो किया होता | शाही शायरी
ya-rab gham-e-hijran mein itna to kiya hota

ग़ज़ल

या-रब ग़म-ए-हिज्राँ में इतना तो किया होता

चराग़ हसन हसरत

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या-रब ग़म-ए-हिज्राँ में इतना तो किया होता
जो हाथ जिगर पर है वो दस्त-ए-दुआ होता

इक इश्क़ का ग़म आफ़त और उस पे ये दिल आफ़त
या ग़म न दिया होता या दिल न दिया होता

नाकाम-ए-तमन्ना दिल इस सोच में रहता है
यूँ होता तो क्या होता यूँ होता तो क्या होता

उम्मीद तो बंध जाती तस्कीन तो हो जाती
वअ'दा न वफ़ा करते वअ'दा तो किया होता

ग़ैरों से कहा तुम ने ग़ैरों से सुना तुम ने
कुछ हम से कहा होता कुछ हम से सुना होता