या-रब ग़म-ए-हिज्राँ में इतना तो किया होता
जो हाथ जिगर पर है वो दस्त-ए-दुआ होता
इक इश्क़ का ग़म आफ़त और उस पे ये दिल आफ़त
या ग़म न दिया होता या दिल न दिया होता
नाकाम-ए-तमन्ना दिल इस सोच में रहता है
यूँ होता तो क्या होता यूँ होता तो क्या होता
उम्मीद तो बंध जाती तस्कीन तो हो जाती
वअ'दा न वफ़ा करते वअ'दा तो किया होता
ग़ैरों से कहा तुम ने ग़ैरों से सुना तुम ने
कुछ हम से कहा होता कुछ हम से सुना होता
ग़ज़ल
या-रब ग़म-ए-हिज्राँ में इतना तो किया होता
चराग़ हसन हसरत