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वुसअत-ए-सई-ए-करम देख कि सर-ता-सर-ए-ख़ाक | शाही शायरी
wusat-e-sai-e-karam dekh ki sar-ta-sar-e-KHak

ग़ज़ल

वुसअत-ए-सई-ए-करम देख कि सर-ता-सर-ए-ख़ाक

मिर्ज़ा ग़ालिब

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वुसअत-ए-सई-ए-करम देख कि सर-ता-सर-ए-ख़ाक
गुज़रे है आबला-पा अब्र-ए-गुहर-बार हुनूज़

यक-क़लम काग़ज़-ए-आतिश-ज़दा है सफ़्हा-ए-दश्त
नक़्श-ए-पा में है तब-ए-गर्मी-ए-रफ़्तार हुनूज़

दाग़-ए-अतफ़ाल है दीवाना ब-कोहसार हुनूज़
ख़ल्वत-ए-संग में है नाला तलब-गार हुनूज़

ख़ाना है सैल से ख़ू-कर्दा-ए-दीदार हुनूज़
दूरबीं दर-ज़दा है रख़्ना-ए-दीवार हुनूज़

आई यक-उम्र से मअज़ूर-ए-तमाशा नर्गिस
चश्म-ए-शबनम में न टूटा मिज़ा-ए-ख़ार हुनूज़

क्यूँ हुआ था तरफ़-ए-आबला-ए-पा या-रब
जादा है वा-शुदन-ए-पेचिश-ए-तूमार हुनूज़

हों ख़मोशी-ए-चमन हसरत-ए-दीदार 'असद'
मिज़ा है शाना-कश-ए-तुर्रा-ए-गुफ़्तार हुनूज़