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वो तो यूँही कहता है कि मैं कुछ नहीं कहता | शाही शायरी
wo to yunhi kahta hai ki main kuchh nahin kahta

ग़ज़ल

वो तो यूँही कहता है कि मैं कुछ नहीं कहता

निज़ाम रामपुरी

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वो तो यूँही कहता है कि मैं कुछ नहीं कहता
मेरा ये मक़ूला है कि मैं कुछ नहीं कहता

कह जाता है वो साफ़ हज़ारों मुझे बातें
फिर उस पे ये कहता है कि मैं कुछ नहीं कहता

ऐ दोस्तो उस शोख़ का मैं क्या कहूँ आलम
कुछ आज वो देखा है कि मैं कुछ नहीं कहता

यूँ ग़ैर सताएँ मुझे और कुछ न कहूँ मैं
मुँह मुझ को तुम्हारा है कि मैं कुछ नहीं कहता

हर बात पे क्या क्या हमें कहता है वो ज़ालिम
गर कहिए तो कहता है कि मैं कुछ नहीं कहता

बस और किया चाहते हो मुझ पे सितम क्या
सोचो तो ये थोड़ा है कि मैं कुछ नहीं कहता

क्या हाल बनाया है ग़म-ए-ग़ैर में अपना
वो आप का नक़्शा है कि मैं कुछ नहीं कहता

जुज़ मेरे किसी और को तो आप सताएँ
हाँ आप ने समझा है कि मैं कुछ नहीं कहता

ऐसा हमें कहते हो कि बस जानते हैं हम
ये आप को धोका है कि मैं कुछ नहीं कहता

क्या क्या मुझे तुम कहते हो इंसाफ़ तो कीजे
ये हौसला मेरा है कि मैं कुछ नहीं कहता

दावा करें गो और 'निज़ाम' अपने सुख़न पर
पर मुझ को ये दावा है कि मैं कुछ नहीं कहता